बिहार

वर्ष 2013 में पहली बार भाजपा से अलग हुए थे नीतीश

पटना- 09 अगस्त। भारतीय जनता पार्टी से 1998 में नीतीश कुमार की जदयू ने नाता जोड़ा था। इसके बाद भाजपा और जदयू का यह गठजोड़ 2013 तक चला। वर्ष 2013 में सीएम नीतीश ने इस्तीफा देकर जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।

जदयू-भाजपा में दरार की मुख्य वजह लोकसभा चुनाव 2014 के लिए नरेन्द्र मोदी को आगे बढ़ाया जाना था, जो नीतीश को रास नहीं आया। भाजपा ने 16 जून, 2013 को नरेन्द्र मोदी को लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया तो नीतीश कुमार खफा हो गए। उन्होंने भाजपा से किनारा करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी के साथ के अपने 17 साल पुराने नाते को तोड़ दिया और जिस पार्टी से निकलकर (राजद) उन्होंने जदयू की स्थापना की उसके साथ मिलकर सरकार गठन किया।

पहली बार 2015 में महागठबंधन की बिहार में बनी थी सरकार

नीतीश कुमार ने साल 2015 में राजनीति के अपने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर विधानसभा का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में बिहार की राजनीति में बदलाव आया और महागठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई। इस चुनाव में जदयू ने 71, राजद ने 80 और कांग्रेस ने 29 सीट जीती। नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता बने और 5वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

दो साल ही महागठबंधन की सरकार चली

साल 2017 में महागठबंधन में दरार पड़ गई। 26 जुलाई को नीतीश कुमार ने प्रदेश के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। इस दौरान भ्रष्टाचार के आरोप में डिप्टी सीएम तेजस्वी से इस्तीफे की मांग बढ़ने लगी थी। बाद में नीतीश कुमार ने कहा था कि ऐसे माहौल में काम करना मुश्किल हो गया था। नीतीश कुमार ने फिर भाजपा और सहयोगी पार्टियों की मदद से सरकार बनाई और 27 जुलाई, 2017 छठी बार में एक बार फिर बिहार के सीएम बने।

साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू को कम सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा ने उन्हें चुनाव में 43 सीटों पर जीत के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया लेकिन महज दो साल बाद ही मतभेद फिर से उभरकर सामने आ गया। नीतीश कुमार ने पाला बदलते हुए 09 अगस्त, 2022 को राजनीति के शुरूआती दिनों के साथी लालू यादव की पार्टी राजद और कांग्रेस के सहयोग से नई सरकार के गठन का दावा पेश कर दिया।

कई मसलों पर अलग रही राय

1998 के दशक से एक-दूसरे की सहयोगी रहे जदयू और भाजपा की हाल के दिनों में अग्निपथ योजना, जाति जनगणना, जनसंख्या कानून और लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर अलग-अलग राय रही हैं। इन सब के बीच राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनावों में एनडीए के उम्मीदवारों का समर्थन कर नीतीश कुमार ने अपनी भावी योजनाओं की भनक तक अपने सहयोगी भाजपा को नहीं लगने दिया।

बीते दो माह से नीतीश कुमार इस योजना पर कर रहे थे काम

नीतीश कुमार भाजपा से किनारा करने की योजना पर उस समय से ही काम कर रहे थे जब भाजपा ने अपने सहयोगी मुकेश सहनी की पार्टी के सभी तीन विधायकों को बीते दो माह पहले तोड़कर भाजपा में शामिल कर लिया था और विधानसभा में 77 विधायक के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई। इसके बाद सीएम नीतीश ने अंदर खाने से राजद को औवेसी के पांच विधायकों को तोड़ने की सहमति दी। राजद ने ओवैसी की पार्टी के चार विधायक को तोड़कर मिला लिया और विधानसभा में 79 विधायक के सबसे बड़ी पार्टी बन गई।

नीतीश कुमार की यह योजना थी कि अगर विधानसभा में कभी भी अगर सरकार बनाने के लिए सबसे बड़ी पार्टी को बुलाया जाएगा तो भाजपा की जगह राजद को ही राज्यपाल को बुलाना पड़ेगा। हालांकि, उसकी नौबत नहीं आई और सर्वसम्मति से एक बार फिर नीतीश कुमार को महागठबंधन ने अपना नेता मान लिया है और नीतीश एक बार फिर से सीएम बनेंगे।

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