भारत

लेह-लद्दाख के दो कुबड़ीय ऊंटों का गहन वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर लौटा NRCC वैज्ञानिक दल

बीकानेर- 21 अगस्त। दो कुबड़ीय ऊंटों की स्थिति के सर्वेक्षण, उनके स्वास्थ्य, पोषण, जनन, एवं प्रजनन संबंधी समस्याओं पर विचार-विमर्श तथा क्षेत्र के पशु पालकों को उष्ट्र पालन व्यवसाय के लिए प्रोत्साहित करने के लिए लद्दाख के नुब्रा घाटी में केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा स्वास्थ्य एवं प्रसार शिविरों तथा कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किए गए। वैज्ञानिकों द्वारा लेह में आयोजित परिचर्चा में 25 से अधिक पशुपालन एवं पर्यटन विभाग से जुड़े विषय-विशेषज्ञों एवं गणमान्यों ने शिरकत कीं। वहीं नुब्रा घाटी में पशु स्वास्थ्य शिविर व कृषक-वैज्ञानिक पशुपालक संवाद कार्यक्रमों में लगभग 50 ऊंटपालकों ने कुल 176 दो कूबड़ीय ऊंटों के साथ अपनी सहभागिता निभाई।

लेह में ‘डबल-हम्प कैमल फार लाइलीहुड सिक्युर्टी इन लद्दाख‘ विषयक परिचर्चा के दौरान सेन्ट्रल इंस्टिटयूट फॉर बुद्विष्ठ स्टडीज, लेह के कुलपति डॉ. राजेश रंजन ने कहा कि दो कूबड़ीय ऊंटों की संख्या बढ़ना, पर्यटनीय एवं इसके संरक्षण की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तो है ही, साथ ही इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका में भी यह सहायक सिद्ध होगा।

केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि नर ऊंटों को पर्यटन के लिए तथा मादा ऊंटों को दूध उत्पादन के लिए प्रयोग में लिया जाना चाहिए, जिससे कि पूरे वर्ष के दौरान इस प्रजाति का समुचित उपयोग होता रहे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऊंटनी के दूध को सामान्य दूध के बजाय औषधी के रूप में इस्तेमाल करने से ऊंटपालकों को इसके दूध की ज्यादा कीमत मिल सकेगी और उष्ट्र पालन व्यवसाय फायदेमंद साबित होगा। उन्होंने यह बताया कि हाल में हुए अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि ऊंटनी के दूध का सेवन मधुमेह, आटिज्म एवं ट्यूबरक्लोसिस में उपयोगी है। पर्यटक, इसके दूध से निर्मित अनूठे चाय, कॉफी आदि उत्पादों का लुत्फ उठा सकेंगे, साथ ही उष्ट्र बच्चों की भी सुरक्षित देखभाल की जा सकेंगी। डॉ. साहू ने इन ऊंटों से प्राप्त ऊन की संभावनाओं पर बात करते हुए बताया कि ऊंटों की उत्तम गुणवत्तायुक्त ऊन के इस्तेमाल से इस प्रजाति का बहुआयामी उपयोग लेते हुए पशु पालकों की आमदनी में आशातीत वृद्धि लाई जा सकती हैं।

परिचर्चा के दौरान विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ओमप्रकाश चोरसिया, निदेशक, डी.आर.डी.ओ. ने स्थानीय उपलब्ध घासों एवं झाडि़यों के संरक्षण पर जोर दिया। डॉ. मो. इकबाल, निदेशक, पशुपालन विभाग, लद्दाख ने ऊंटों के विकास के लिए एनआरसीसी से और अधिक अध्ययन की आवश्यकता जताई।

इस अवसर पर एनआरसीसी की ओर से ‘फ्रीज ड्राइड कैमल मिल्क पाउडर‘ प्रदर्शित किया गया वहीं केन्द्र द्वारा निर्मित ‘ऊंटतेजक‘ उत्पाद भी लॉन्च किया गया। ‘ऊंटतेजक‘ उत्पाद के संबंध में केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.के. सावल ने बताया कि 2 ग्राम प्रति पशु को इसे देने पर पशु की जनन, कार्यक्षमता आदि में महत्वपूर्ण रूप से बढ़ोत्तरी की जा सकेगी। वहीं केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश रंजन ने एनआरसीसी में ऊंटों के स्वास्थ्य देखभाल व वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला। केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन के दीहार संस्थान, लेह का भ्रमण किया गया तथा उच्च ऊंचाई पर जानवरों में विशेषकर दो कुबड़ वाले ऊंटों पर सहयोगात्मक अनुसंधान की सम्भावनाओं पर चर्चा की गई।

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