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मणिपुर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- राज्य की हिंसा अब काबू में

नई दिल्ली- 17 मई। सुप्रीम कोर्ट में आज मणिपुर हिंसा मामले पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने बताया कि हिंसा काबू में आ चुकी है। हाई कोर्ट ने मैतई समुदाय को जनजाति (एसटी) का दर्जा देने का आदेश दिया था, उसके लिए भी राज्य सरकार को हाई कोर्ट ने एक साल का समय दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया कि सरकार से जुड़े लोग किसी समुदाय के खिलाफ बयान न दें। मामले की अगली सुनवाई जुलाई में होगी।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की गई है। पेट्रोलिंग हो रही है, परिवहन को लेकर भी कदम उठाए गए हैं। 46 हजार से ज्यादा लोगों को मदद दी गई है। पीड़ितों को मुआवजा दिया जा रहा है। सुरक्षा के पर्याप्त बंदोबस्त किए गए हैं। तीन करोड़ रुपये की आकस्मिक निधि को मंजूरी दी गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि हाई कोर्ट में क्या हुआ। तब मेहता ने कहा कि कोर्ट का आदेश लागू करने के लिए एक साल का समय मांगा था। हाई कोर्ट ने आदेश को लागू करने के लिए समय दिया है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की सोच रहे हैं। किसी ने हाई कोर्ट के सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ क्या डिवीजन बेंच में याचिका दाखिल की है। तब कोर्ट को बताया गया कि ट्राइबल फोरम और दूसरे याचिकाकर्ताओं ने सिंगल बेंच के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील की है। डिवीजन बेंच 15 मई को नोटिस जारी कर चुकी है। 6 जून को डिवीजन बेंच सुनवाई करेगी। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को ग्रीष्मावकाश के बाद ताजा स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को सुनवाई के दौरान हैरानी जताई थी कि हाई कोर्ट किसी वर्ग को एसटी की सूची में शामिल करने का आदेश कैसे दे सकता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने हालात सामान्य करने के लिए केंद्र और मणिपुर सरकार की तरफ से उठाए जा रहे कदमों को रिकॉर्ड पर लेते हुए राहत शिविरों में रह रहे लोगों को सुविधा और मेडिकल सहायता देने का निर्देश दिया था।

कोर्ट ने कहा था कि ये मानवीय समस्या है। हमारी चिंता जानमाल के नुकसान को लेकर है। कोर्ट ने सरकार से कहा था कि राहत कैम्प में खाने और चिकित्सा सुविधाओं के उचित इंतजाम किए जाएं। विस्थापित लोगों के पुनर्वास, धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। सुनवाई के दौरान मणिपुर सरकार ने बताया था कि इस पर उचित कानूनी कदम उठाए जा रहे हैं। पर्याप्त सुरक्षा बलों की नियुक्ति भी की गई है। हालात सामान्य हो रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि हालात सामान्य करने के लिए जरूरी कदम उठाए गए हैं।

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। एक याचिका बीजेपी विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई और दूसरी याचिका मणिपुर ट्राइबल फोरम ने दायर की है। बीजेपी विधायक गंगमेई की ओर से दायर याचिका में मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद पूरे मणिपुर में अशांति हो गई है। इसकी वजह से कई लोगों की मौत हो गई।

हाई कोर्ट ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वो मैतई समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने पर विचार करे। गंगमेई की याचिका में कहा गया है कि किसी जाति को एसटी में शामिल करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है न कि हाई कोर्ट के पास।

मणिपुर ट्राइबल फोरम की ओर से दाखिल दूसरी याचिका में मांग की गई है कि सीआरपीएफ कैंपों में भाग कर गए मणिपुर के आदिवासी समुदाय के लोगों को वहां से निकाला जाए और उन्हें उनके घरों में सुरक्षित रूप ये पहुंचाया जाए। याचिका में आरोप लगाया गया है कि आदिवासी समुदाय पर हमले के पीछे बीजेपी का पूरा समर्थन है जो कि राज्य और केंद्र में सत्ता में है। याचिका में कहा गया है कि राज्य की पुलिस भी दबंग समुदाय के पक्ष में काम कर रही है और लोगों की मौत पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

याचिका में मांग की गई है कि राज्य में हुई हिंसा की जांच असम के पूर्व डीजीपी हरेकृष्ण डेका के नेतृत्व में गठित एसआईटी करे। इस एसआईटी के कामों की मॉनिटरिंग मेघालय राज्य मानवाधिकार आयोग के पूर्व चेयरमैन जस्टिस तिनलियानथांग वैफेई करें, ताकि आदिवासियों पर हमला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो सके।

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