भारत

मणिपुर में यौन हिंसा की जांच के लिए पूर्व महिला जजों की ‘सुप्रीम कमेटी’ बनाने के संकेत

नई दिल्ली- 31 जुलाई। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में महिलाओं के साथ यौन हिंसा की जांच के लिए पूर्व महिला जजों की एक कमेटी बनाने का संकेत दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र और राज्य सरकार से एफआईआर, जांच और पुनर्वास के लिए उठाए गए कदम आदि का विवरण देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को 2 बजे मामले की सुनवाई फिर करेगा।

आज सुनवाई के दौरान दोनों पीड़ित महिलाओं की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने मामले को सीबीआई को दिए जाने और ट्रायल को असम भेजने का विरोध किया। सिब्बल ने कहा कि हम मामले की मणिपुर पुलिस और सीबीआई इन दोनों में से किसी से भी मामले की जांच नहीं चाहते हैं। साथ ही मामले का ट्रायल असम में भी किए जाने का विरोध कर रहे हैं। तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने असम ट्रांसफर की बात नहीं कही है। ट्रायल मणिपुर के बाहर कहीं भी ट्रांसफर किया जा सकता है।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हम वीडियो देखकर विचलित हुए लेकिन वहां महिलाओं पर अत्याचार की कहानी इस वीडियो के अलावा भी घटित हो रही है। चीफ जस्टिस ने राज्य सरकार से पूछा कि आज तक उन घटनाओं की कितनी एफआईआर दर्ज की गई हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि सिर्फ तीन महिलाओं के साथ बदसलूकी तक सीमित नहीं है। केंद्र सरकार के हलफनामे के मुताबिक बहुत सी महिलाएं बदसलूकी की शिकार हुई हैं। इसके लिए सरकार को एक मैकेनिज्म बनाने की जरूरत है, जिससे यौन हिंसा की शिकार हुई महिलाओं को न्याय मिल सके।

चीफ जस्टिस ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ ऐसी हिंसा रोकने के लिए तंत्र स्थापित करने की जरूरत है। अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि इस मामले में बहुत अधिक जटिलता है। इस मामले की सीबीआई जांच होने दीजिए और वह खुद जांच की निगरानी करेंगे। अटार्नी जनरल ने कहा कि लोगों की चिंताओं को ध्यान में रखा गया है और मामले का विश्लेषण किया गया है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम सभी पक्षों को संक्षेप में सुनेंगे ताकि आगे हम तय कर सकें कि आगे हमें क्या करना है।

पीड़ित महिलाओं की ओर से सिब्बल ने कहा कि पुलिस भी भीड़ के साथ थी। बयानों से पता चलता है कि पुलिस ही दोनों को प्रदर्शनकारियों के पास ले गई और उनको भीड़ के पास छोड़ दिया। सिब्बल ने कहा कि एक पीड़ित महिला के भाई और पिता की हत्या कर दी गई लेकिन आज तक शव का भी पता नहीं चला। अब तक सिर्फ जीरो एफआईआर दर्ज की गई। सिब्बल ने कहा कि सरकार को यह नहीं पता है कि 3 मई के बाद से अब तक कितनी एफआईआर दर्ज की गई हैं। सिब्बल ने कहा कि सीबीआई नहीं, हमें कोर्ट की निगरानी वाली एसआईटी जांच चाहिए। इस पर तुषार मेहता ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस केस को मॉनीटर कर सकता है तो केंद्र को इस पर कोई आपत्ति नहीं।

सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से वकील इंदिरा जयसिंह ने एक उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी बनाने की मांग की, जिसमें सिविल सोसायटी से जुड़ी महिलाएं भी शामिल हों, जिन्हें ऐसे मामलों का अनुभव हो। तब चीफ जस्टिस ने पूछा कि अगर उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी मामले की जांच करेगी तो उस दौरान मामले की जांच कर रही सीबीआई का क्या होगा। तब जयसिंह ने कहा कि जांच पर रोक लगाई जा सकती है या दोनों को साथ साथ जारी रख सकते हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम फिलहाल जांच पर रोक नहीं लगा सकते, क्योंकि हिंसा करने वालों को गिरफ्तार भी करना है।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने आरोप लगाया कि हिंसा को सोची समझी और योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया। अब तक महिलाओं पर हमले के कम से कम 16 मामले सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि मणिपुर में जो हुआ उस पर केंद्र ने अपनी आंखें बंद कर लीं। पुलिस या सीबीआई पर कोई भरोसा नहीं। मणिपुर में जांच के लिए जो एसआईटी बने वह सिर्फ कुछ घटनाओं पर नहीं, बल्कि सभी घटनाओं पर केन्द्रित हो।

सुनवाई के दौरान वकील बांसुरी स्वराज ने कहा कि सारे देश की महिलाओं को सुरक्षा की ज़रूरत है। मणिपुर जैसे ही घटनाएं पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, केरल में हुई है। कोर्ट सिर्फ मणिपुर तक सीमित नहीं रहे। बाकी राज्यों के लिए भी वैसा ही आदेश दे, जहां इस तरह की घटनाएं हुई हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि इसमें दो राय नहीं कि देश में दूसरी जगह भी ऐसी घटनाएं हुई हैं, पर मणिपुर में जो हुआ, वो एक अलग दर्जे की जघन्यता है। बाकी घटनाओं का हवाला देकर मणिपुर की घटनाओं को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने वायरल वीडियो को लेकर पुलिस एक्शन पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को निर्वस्त्र करके 4 मई को परेड कराई गई लेकिन जीरो एफआईआर 18 मई को दर्ज हुई। पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में ही 14 दिन लग गए। आखिर पुलिस इतने दिनों तक क्या कर रही थी।

दरअसल, मणिपुर में जिन दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया गया था, उन दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दोनों महिलाओं ने वकील जावेदुर रहमान के जरिये दायर याचिका में कहा है कि इस घटना की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को स्वतः संज्ञान लिया था। इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य सरकार की सहमति लेकर जांच सीबीआई को ट्रांसफर की जा रही है। केंद्र सरकार ने कहा है कि मुकदमे का तेज निपटारा जरूरी है। केंद्र सरकार ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट इस केस को राज्य से बाहर ट्रांसफर करने का आदेश दे और ट्रायल कोर्ट से कहे कि वह चार्जशीट के 6 महीने के भीतर फैसला दे।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने वाला वीडियो परेशान करने वाला है। हिंसा प्रभावित क्षेत्र में महिलाओं को सामान की तरह इस्तेमाल किया गया। अगर राज्य सरकार कार्रवाई नहीं करेगी, तो हम करेंगे। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि ये समय है, जब सरकार वाकई में काम करे। कोर्ट ने कहा था कि किसी महिला का इस्तेमाल सांप्रदायिक विभाजन बढ़ाने के लिए नहीं किया जा सकता है। ये मानवाधिकार का सीधा-सीधा उल्लंघन है। ये लोकतांत्रिक संविधान के लिए ठीक नहीं है।

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