नई दिल्ली- 17 जुलाई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज दिल्ली में आयोजित स्वच्छ सर्वेक्षण कार्यक्रम में स्वच्छता के लिए पुरस्कार प्रदान किए। यह आयोजन आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा किया गया। इस मौके पर राष्ट्रपति ने साफ-सफाई को लेकर भारत की सोच, परंपराएं और आज की जरूरतों के बारे में अपने विचार साझा किए।
राष्ट्रपति ने कहा कि स्वच्छ सर्वेक्षण एक बहुत ही सफल पहल रही है, जिसने देश के शहरों को साफ-सफाई के लिए मेहनत करने के लिए प्रेरित किया है। मुझे खुशी हुई कि इस बार का सर्वेक्षण दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता सर्वेक्षण बना, जिसमें करीब 14 करोड़ लोगों ने भाग लिया। भारत की संस्कृति में स्वच्छता को हमेशा से बहुत महत्व दिया गया है। हमारे घर, मंदिर और आस-पास का वातावरण साफ रखना हमारी पुरानी परंपरा का हिस्सा है। राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी को याद करते हुए कहा कि गांधीजी स्वच्छता को ईश्वर भक्ति के बाद सबसे जरूरी चीज मानते थे।
राष्ट्रपति ने कहा कि मैंने भी जनसेवा की शुरुआत स्वच्छता से की थी। जब मैं अधिसूचित क्षेत्र परिषद की उपाध्यक्ष थीं, तब मैं रोज अलग-अलग वार्डों में जाकर सफाई व्यवस्था की खुद निगरानी करती थीं। संसाधनों का कम इस्तेमाल करना और चीजों को दोबारा इस्तेमाल में लाना हमारी जीवनशैली का हिस्सा रहा है। आज जिस ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ की बात हो रही है, उसकी जड़ें हमारी पारंपरिक जीवनशैली में ही हैं। आदिवासी समुदायों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि ये लोग कम संसाधनों में रहते हैं, पर्यावरण से सामंजस्य रखते हैं और बर्बादी नहीं करते।
राष्ट्रपति ने कहा कि कचरे को सही तरीके से प्रबंधित करने के लिए सबसे जरूरी है कि हम घर से ही सूखे और गीले कचरे को अलग करें। शून्य अपशिष्ट बस्तियां इस दिशा में अच्छा उदाहरण पेश कर रही हैं। उन्होंने विद्यालयों में शुरू किए गए स्वच्छता मूल्यांकन की भी सराहना की और कहा कि इससे बच्चों में स्वच्छता के अच्छे संस्कार विकसित होंगे।
प्लास्टिक और ई-कचरे की समस्या पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि ये एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यदि हम सब मिलकर प्रयास करें तो हम देश का प्लास्टिक उत्सर्जन काफी हद तक घटा सकते हैं। सरकार ने पहले ही सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाई है और प्लास्टिक पैकेजिंग को लेकर जरूरी दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि सभी नागरिक मिलकर स्वच्छ भारत मिशन को पूरी ईमानदारी से आगे बढ़ाएंगे और 2047 तक भारत को दुनिया के सबसे साफ-सुथरे देशों में शामिल कर देंगे।
