
जेल में होने के बावजूद मंत्री पद पर बने रहने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
नई दिल्ली- 26 सितंबर। सुप्रीम कोर्ट ने जेल में होने के बावजूद लोगों के मंत्री पद पर बने रहने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम पद से किसी को हटाने के लिए अपनी तरफ से नियम नहीं बना सकते। कानून बनाना संसद का काम है।
26HNAT67 जेल में होने के बावजूद मंत्री पद पर बने रहने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
नई दिल्ली, 26 सितंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने जेल में होने के बावजूद लोगों के मंत्री पद पर बने रहने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम पद से किसी को हटाने के लिए अपनी तरफ से नियम नहीं बना सकते। कानून बनाना संसद का काम है।
वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने दायर याचिका में कहा कि दो दिन से अधिक न्यायिक हिरासत में रहने पर जज, आईएएस, आईपीएस अस्थायी रूप से पद से हटा दिए जाते हैं लेकिन लंबे अरसे से बंद मंत्री पद पर बने हुए हैं। याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट लॉ कमीशन को निर्देश दे कि वो विकासशील देशों के कानूनों की पड़ताल करे ताकि संविधान की धारा 14 के मुताबिक मंत्रियों, विधायकों और लोकसेवकों की गरिमा बनाये रखी जा सके।
याचिका में कहा गया था कि मंत्री भारतीय दंड संहिता की धारा 21 और भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 2(सी) के तहत न केवल एक लोकसेवक होता है बल्कि वो संविधान की अनुसूची 3 के तहत मंत्री पद का पवित्र शपथ लेता है। मंत्री को सैलरी मिलती है, मुफ्त रेल टिकट, मुफ्त हवाई टिकट और उसे आईएएस, आईपीएस और जजों की तरह जीवन भर कई सारे भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं। ऐसे में एक मंत्री आईएएस, आईपीएस और जजों की तरह का पूरा वेतन पाने वाला लोकसेवक है। याचिका में दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन की भी मिसाल दी गई थी।



