
जमीअत समेत मुस्लिम विद्वानों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दिए जाने का स्वागत किया, सरकार से भी बिना दबाव के संसद से इसे मान्यता न देने की अपील
नई दिल्ली- 17 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट के जरिए समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दिए जाने के फैसले का मुस्लिम संगठनों, धर्म गुरुओं और विद्वानों ने स्वागत किया है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय समाज और संस्कृति की रक्षा करने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से समाज में फैलने वाली बुराई, बेशर्मी और गलत परंपराओं को रोकने का काम किया है। उनका कहना है कि इस फैसले पर केंद्र सरकार को भी गंभीरता से विचार करना चाहिए और भारतीय समाज और संस्कृति को सामने रखकर संसद में समलैंगिकता के खिलाफ कानून बनाने का फैसला करना चाहिए।
फैसले का स्वागत करते हुए इस मामले के एक पक्षकार और जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि भारत एक प्राचीन सभ्यता और संस्कृति वाला देश है, जो विभिन्न धर्मों और विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करता है। इसे पश्चिमी दुनिया के स्वतंत्र विचारों वाले अभिजात्य वर्ग की मनमानी से कुचला नहीं जा सकता। न्यायालय ने इस फैसले से विवाह की पवित्र और शुद्ध व्यवस्था की रक्षा की है, जैसा कि हमारे देश में सदियों से समझा और उसे आत्मसात किया जा रहा है। हम व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने में अदालत के परिपक्व फैसले की सराहना करते हैं।
इस मामले में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की ओर से प्रसिद्ध वकील कपिल ने सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से ठोस तर्क प्रस्तुत किए और आरंभिक चरण में ही अदालत को सहमत किया था कि ऐसी शादी की किसी भी धर्म में अनुमति नहीं है। इसलिए पर्सनल लॉ के अंतर्गत इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे में कोर्ट ने तय किया था कि इस शादी के बारे में बहस केवल स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होगी। सिब्बल ने कहा था कि ऐसी शादियों के बुरे प्रभाव पड़ेंगे। यह मामला अन्य पारिवारिक कानूनों जैसे विरासत, उत्तराधिकार, गोद लेने और विभिन्न समुदायों के पर्सनल लॉ को भी प्रभावित करेगा। इस मामले में जमीअत के वकील कपिल सिब्बल को एडवोकेट एमआर शमशाद और एडवोकेट नियाज अहमद फारूकी असिस्ट कर रहे थे।
समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए राजधानी की शाही मस्जिद फतेहपुरी के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने कहा है कि हमें सुप्रीम कोर्ट से इसी तरह के फैसले की उम्मीद थी। समलैंगिकता को कोई भी धर्म मान्यता नहीं दे सकता। इस्लाम में भी इसे बेहद बुरा और गुनाह का काम बताया गया है। उनका कहना है कि इस मामले में आगे भी अदालत को अपने फैसले पर डटा रहना चाहिए और सरकार को भी इस तरह की बुराइयों को रोकने के लिए काम करना चाहिए।
प्रख्यात मुस्लिम विद्वान और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफेसर ऐमिरेटस पदमश्री प्रोफ़ेसर अख्तरुल वासे ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि यह फैसला सराहनीय है और इस फैसले से भारतीय समाज में पैदा होने वाली बेहयाई और बदतमीजी को सुप्रीम कोर्ट ने रोकने का काम किया है। उनका कहना है कि पुरुष और महिला की शादी मानव जाति उत्पत्ति को बढ़ावा देने के लिए की जाती है लेकिन समलैंगिकता महज़ दो लोगों के मज़ा लेने के लिए है। इसलिए इसे किसी भी सूरत में मान्यता नहीं दी जा सकती है। समलैंगिकता एक गलत और नापसंदीदा कार्य है, इसे भारतीय समाज में पनपने से रोकना हमारी जिम्मेदारी है।
ऑल इंडिया इमाम आर्गेनाइजेशन के चीफ काज़ी मुफ्ती मोहम्मद ताहिर हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि यह बहुत बड़ा फैसला है। इससे हमारे समाज में पैदा होने वाली एक बड़ी बुराई को रोकने में कामयाबी मिलेगी। उनका कहना है कि हमारे समाज में पुरुष और महिला की शादी को पवित्र माना गया है और इसकी पवित्रता को कायम रखने के लिए यह फैसला काफी महत्वपूर्ण है। समलैंगिकता एक अभिशाप है। इसको किसी भी तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पाले में गेंद फेंक दी है। सरकार को भी संसद में समलैंगिकता के खिलाफ कानून बनाकर इस पर रोक लगाना चाहिए।
मुस्लिम विद्वान डॉ. तस्लीम रहमानी ने समलैंगिकता पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है लेकिन उन्होंने इस बात की आशंका व्यक्त की कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण सरकार के जरिए इसे मान्यता दी जा सकती है। हमारे समाज में वेस्टर्न कल्चर को जबरदस्ती धकेलने का प्रयास किया जा रहा है। आज अदालत ने तो इस मामले में फैसला सुना कर अपने आप को अलग कर लिया है लेकिन सरकार को इस मामले में फैसला करने को कह कर अभी भी एक रास्ता खुला छोड़ दिया गया है।



