चप्पल व सैंडल पहन कर स्कूल जाने को छात्र मजबुर

मधुबनी। कक्षा सात के छात्र अंश झा ने जब स्कूल जाने की तैयारी की तो अपने पुराने रखे जूते को खोजा। चार नंबर का पहनने वाले अर्पित को वह नहीं अटा। पहले उसे अटपटा लगा। क्योंकि वह तो वहीं जूता पहनकर स्कूल जाता था। चार दिन ही तो उसे पहनकर स्कूल गया था। जूता नहीं अटने पर माथापच्ची कर रहे अर्पित को उसकी मां अभिलाषा कुमारी ने देखा, तब माजरा समझ में आया कि जूता पहन कर वह भले ही चार दिन ही स्कूल गया। पर स्कूल ही तो लगभग दो साल बंद हो गया। रखा नया जूता अब पैर में नहीं आ रहा। उसे नया जूता बड़े नंबर का होगा। उसकी तलाश शुरू हुई। तब मालूम हुआ कि शहर में स्कूली जूता आउट ऑफ स्टॉक है। परिजनों ने ऑनलाइन खोज शुरू किया। लेकिन अधिकतर ठीक ठाक जूता आउट ऑफ स्टॉक ही दिखाया गया। यहां भी स्कूली जूता ढंग का नहीं मिल रहा। यही हालत कक्षा नौ में पढ़ने वाली श्रुति झा व कक्षा ग्यारहवीं में पढ़ने वाली जाह्ववी झा की हुई।
सप्लाई चेन ही हो चुका है प्रभावित-
थोक व खुदरा जुता के विक्रेता समीतुल्लाह खान ने बताया कि जो स्टॉक में थे उसमें से 50 फीसदी खराब हो चुका है। जो बचे हैं,उसमें संख्या को लेकर माथापच्ची है। कंपनी,डिस्ट्रीब्यूटर एवं एजेंसी सभी की हालत खास्ता है। कोरोना के कारण कंपनी ने उत्पादन ही बंद कर दिया। मार्केट खुला है तो श्रमिक की काफी इन कंपनियों में है। इस तरह से इसका चेन ही टूट गया है। बताया कि हर दिन लगभग 50 से 75 जूते की डिमांड उनके काउंटर पर पहुंचता है। इस तरह की समस्या से जुझ रहे मनोज पूर्वे ने बताया कि अधिकतर ग्राहक चार से सात नंबर के जूते खोज रहे हैं। क्योंकि इस आयु वर्ग के जूते की मांग अधिक है,इस लिए इसके लिए और अधिक आपाधापी है। स्कूलों में जूते स्पलाई करने वाले पप्पु कुमार ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र के कुछ दुकान में जूते थे,उसे वह जुलाई में ही उठा लिया। जिससे डिमांड के हिसाब से महज 15 फीसदी को पूरा किया जा सका है। बताया कि अक्टूबर में ही स्थिति सामान्य होने की संभावना है। क्योंकि संस्थान खुले हैं तो हर जगहों पर लगातार हो रही बारिश ने भी इस बाजार को नुकसान पहंुचाया है।
एक लाख से अधिक जूते ही है डिमांड-
जिले में सीबीएसइ बोर्ड के स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 55 हजार है। इसके अलावे प्लस टू के छात्रों की संख्या लगभग चार हजार है। जिनके लिए जूता पहनकर जाना अनिवार्य माना जाता है। वहीं सरकार प्लस टू उच्च विद्यालय और सरकारी स्कूलों में भी नवमीं और दसवीं के छात्र व छात्राएं स्कूली जूता को ही प्राथमिकता देता है। इन विद्यालयों में भी जूते पहनने का चलन बढ़ा है। लेकिन जूता नहीं मिलने के कारण अधिकतर बच्चे सैंडल पहनकर ही स्कूल पहुंच रहे हैं।
डिमांड के बाद भी कीमत में नहीं हुआ इजाफा-
व्यवसायी मनोज पूर्वे ने बताया कि डिमांड बढ़ने के बाद भी ब्रांडेड जूते की कीमत में वृद्धि नहीं हुई है। लोकल एवं छोटे स्तर पर बने जूते का मूल्य बढ़ा दिया गया है। हालांकि गुणवत्ता के कारण लोगों को यह नहीं भार रहा है। बताया कि सामान्य स्कूली जूते ही कीमत 250 से शुरू होती है।
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Author: lakshyatak

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