उपराष्ट्रपति ने देश की सांस्कृतिक विरासत को पहचानने और प्रतिभाशाली कलाकारों को बढ़ावा देने का किया आह्वान

नई दिल्ली- 16 सितंबर। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को भारत की 5000 वर्षों से अधिक की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने मीडिया से हमारी सांस्कृतिक विरासत को पहचानने का आह्वान किया और हमारे कलाकारों की संरचित तरीके से रक्षा, समर्थन और पोषण करने की आवश्यकता व्यक्त की।

उपराष्ट्रपति विज्ञान भवन में विभिन्न क्षेत्रों के 70 पुरुषों और 14 महिलाओं सहित कुल 84 कलाकारों को संगीत नाटक अकादमी अमृत पुरस्कार प्रदान करने के बाद सभा को संबोधित कर रहे थे। यह पुरस्कार 75 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय कलाकारों को सम्मानित करने के लिए गठित किया गया था, जिन्हें अब तक अपने करियर में कोई राष्ट्रीय सम्मान नहीं दिया गया था।

उपराष्ट्रपति ने उन व्यक्तियों को सम्मानित करने में प्रसन्नता व्यक्त की जिनके योगदान ने राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत और गौरव को बरकरार रखा है। आज सम्मानित किए गए 75 वर्ष से अधिक आयु के सभी व्यक्तियों के प्रति अपनी गहरी प्रशंसा व्यक्त करते हुए, धनखड़ ने इन प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों की उपलब्धियों को स्वीकार करने में ऐतिहासिक असमानता पर प्रकाश डाला।

उपराष्ट्रपति ने आज के दिन को विशेष बताते हुए कहा कि आज उनका सम्मान किया जा रहा है कि जिनकी वजह से भारत की संस्कृति सम्मानित होती है और देश का गौरव बढ़ता है। 75 वर्ष से अधिक की आयु के बावजूद अब तक इन कलाकारों को किसी भी प्रकार का सम्मान नहीं मिलने पर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा, “हर सम्मानित महापुरुष और महान महिला 75 साल से ऊपर है और उनको आज तक किसी ने नहीं पहचाना। ऐसा क्यों हुआ?”

कई गुमनाम नायकों का जिक्र करते हुए, जिनके योगदान को हाल के वर्षों में पद्म पुरस्कारों के माध्यम से मान्यता दी गई है, उन्होंने ऐसे व्यक्तियों को पुरस्कारों की व्यापक सार्वजनिक स्वीकृति का उल्लेख किया।

अनुभवी कलाकारों को हमारी सांस्कृतिक विरासत का सच्चा रक्षक और वास्तुकार बताते हुए धनखड़ ने कहा कि उनके अमूल्य योगदान को बहुत पहले ही मान्यता दी जानी चाहिए थी। उन्होंने जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक मंच पर भारतीय संस्कृति के शानदार प्रदर्शन की भी सराहना की और विश्वास जताया कि सही नेतृत्व के साथ, भारत 2047 में वैश्विक मंच पर अपने शिखर पर पहुंचेगा।

न्यायमूर्ति अंसारिया के फैसले का हवाला देते हुए, उपराष्ट्रपति ने एक सैनिक और एक प्रोफेसर के बीच हुई बातचीत का जिक्र किया और रेखांकित किया कि जिन व्यक्तियों को आज सम्मानित किया गया है, वे हमारी सांस्कृतिक विरासत के वास्तविक रक्षक हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार द्वारा शुरू की गई कई योजनाओं के माध्यम से ऐसे कलाकारों को “संरचित तरीके” से मदद करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि देश-दुनिया में बहुत कम देश हैं जिनकी संस्कृति 500-700 साल से अधिक पुरानी नहीं है लेकिन भारत की संस्कृति 5,000 साल पुरानी है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम इन कलाकारों की कद्र करें, उनका ध्यान रखें, उनका संरक्षण करें, उनका पोषण करें और उन्हें संरचित तरीके से मदद करें।

पुरस्कार विजेताओं की सूची में जम्मू-कश्मीर से कृष्ण लंगू (थिएटर और संगीत), गोवा से जॉन क्लारो फर्नांडीस (नाटक लेखन), झारखंड से महाबीर नायक (लोक संगीत और नृत्य) और लद्दाख से त्सेरिंग स्टैनज़िन (लोक संगीत) शामिल हैं। आंध्र प्रदेश के तीन, अरुणाचल प्रदेश के दो और महाराष्ट्र के छह कलाकारों को भी प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला। उत्तर प्रदेश, गुजरात से तीन-तीन और पंजाब तथा दिल्ली से दो-दो को भी चुना गया। चार-चार पुरस्कार प्राप्तकर्ता बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक से हैं, जबकि असम और राजस्थान से पांच-पांच को भी पुरस्कार मिला।

पुरस्कार विजेताओं को एक लाख रुपये के अलावा एक ताम्रपत्र और अंगवस्त्रम भी मिला। पुरस्कार समारोह में कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, विदेश राज्य और संस्कृति मंत्री मीनाक्षी लेखी और संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष संध्या पुरेचा, संस्कृति मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, देश भर के प्रतिष्ठित कलाकार और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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Author: lakshyatak

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