देहरादून- 27 अक्टूबर। उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र लैंसडौन का ब्रिटिशकालीन नाम यानी 100 साल से भी अधिक पुराने लैंसडौन नाम को बदलने की तैयारी चल रही है। अब इसका नाम बदलकर ‘कालौं का डांडा (अंधेरे में डूबे पहाड़)’ किया जाएगा।
रक्षा मंत्रालय ने लैंसडौन के सैन्य अधिकारियों से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है। लैंसडौन नाम से पहले इस इलाके को ‘कालौं का डांडा’ नाम से पुकारा जाता था। भारतीय जनता पार्टी ने सेना की ओर से गुलामी की पहचान मिटाने की कोशिशों में लैंसडौन का नाम परिवर्तन को शामिल करने का स्वागत किया है।
रक्षा मंत्रालय ने ब्रिटिशकाल में छावनी क्षेत्रों की सड़कों, स्कूलों,संस्थानों, नगरों और उपनगरों के रखे गए नामों को बदलने के लिए उत्तराखंड सब एरिया के साथ सेना के अधिकारियों से प्रस्ताव मांगें हैं। उनसे ब्रिटिशकाल के समय के नामों के स्थान पर क्या नाम रखे जा सकते हैं, इस बारे में भी सुझाव देने को कहा गया है।
केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट का कहना है कि समय-समय पर क्षेत्र के लोग नाम बदलने की मांग करते रहे हैं। ऐसे प्रस्तावों का रक्षा मंत्रालय परीक्षण करता है। देश, काल और परिस्थितियों को देखकर प्रस्ताव पर विचार किया जाता है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि 70 साल तक देश में सत्ता सुख भोगने वालों को विचार करना चाहिए,अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा से अधिक देश समाज की सांस्कृतिक व स्वाभिमान बढ़ाने वाली पहचान को सम्मान देना अधिक जरूरी है।
भारतीय सेना का अपने संस्थानों के ब्रिटिश कालीन नामों को उनके असली पहचान वाले नामों में बदलने की यह मुहिम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की औपनिवेशिक और गुलाम मानसिकता वाली सोच को परास्त करने की मुहिम में एक कड़ी है।
इसी क्रम में पौड़ी स्थित लैंसडौन छावनी के नाम बदलने के प्रस्ताव भेजे जाने पर प्रसन्नता जाहिर किया है। उन्होंने कहा कि भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी है। स्थानीय लोगों व प्रदेशवासियों की लंबे समय से इस स्थान के मौलिक नाम ‘कालौं का डांडा’ को पुनर्स्थापित करने की मांग रही है। उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि लैंसडौन छावनी अधिकारियों की ओर से सैन्य योजना के अनुसार और जनभावनाओं के अनुरूप नाम परिवर्तन का यह प्रस्ताव शीघ्र ही मंजूर हो जाएगा।
गौरतलब है कि स्थानीय स्तर पर लंबे समय से लैंसडौन का नाम बदलने की मांग होती आ रही है। स्थानीय लोग लैंसडौन का नाम ‘कालौं का डांडा’ रखने की मांग करते आए हैं। इस संबंध में रक्षा मंत्रालय को भी पत्र भेजे जा चुके हैं।
बदल गया नाम—
गढ़वाली जवानों की वीरता और अद्वितीय रणकौशल से प्रभावित होकर 1886 में गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना हुई। पांच मई 1887 को ले.कर्नल मेरविंग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में बनी पहली गढ़वाल रेजीमेंट की पलटन चार नवंबर 1887 को लैंसडौन पहुंची। उस समय लैंसडौन को ‘कालौं का डांडा’ कहते थे। इस स्थान का नाम 21 सितंबर 1890 तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडौन के नाम पर लैंसडौन रखा गया।
608 हेक्टेयर में फैला है लैंसडौन—
लैंसडौन नगर सैन्य छावनी क्षेत्र है, जो 608 हेक्टेयर में फैला है। नगर के आधे से अधिक भाग में बांज, बुरांश और चीड़ के वृक्षों के सदाबहार वनों का विस्तार है। यह एक प्रसिद्ध और पसंदीदा पर्यटक स्थल भी है।
